शनि देव जी की कथा भारतीय पौराणिक ग्रंथों और लोक कथाओं में वर्णित है। शनि देव, जिन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है, सूर्य देव और छाया (संध्या) के पुत्र हैं। वे नौ ग्रहों में से एक हैं और कर्म के अनुसार फल देने वाले देवता माने जाते हैं। उनकी दृष्टि को क्रूर माना जाता है, लेकिन यह न्याय और धर्म का पालन करने के लिए होती है।
शनि देव की जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनि देव का जन्म सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया से हुआ था। छाया, सूर्य देव की पत्नी संज्ञा की छाया स्वरूप थीं। जब शनि देव का जन्म हुआ, तो उनकी रंगत बहुत काली थी। सूर्य देव ने यह देखकर उन्हें अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया। इस कारण छाया ने शनि देव को तप और साधना में प्रवीण बनाया। उनकी तपस्या के प्रभाव से उन्हें देवताओं के बीच उच्च स्थान प्राप्त हुआ।
शनि देव और उनकी दृष्टि
शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। कहा जाता है कि उनकी दृष्टि बहुत प्रभावी और कठोर होती है। जब वह किसी पर कृपा दृष्टि डालते हैं, तो उसे अपार सफलता मिलती है, लेकिन उनकी कुदृष्टि से व्यक्ति को कष्टों का सामना करना पड़ता है।
एक कथा के अनुसार, शनि देव का प्रभाव इतना अधिक था कि उनकी माता ने एक बार उन्हें क्रोधित होकर देखा, तो उनके पिता सूर्य देव को भी प्रभावित किया। इस वजह से सूर्य देव ने शनि देव को शाप दिया कि उनकी दृष्टि बहुत शक्तिशाली होगी और जिस पर भी वह गिरेगी, उसे कष्ट होगा।
शनि देव का भगवान हनुमान से संबंध
शनि देव और भगवान हनुमान के बीच एक प्रसिद्ध कथा है। जब रावण ने शनि देव को बंदी बना लिया था, तब हनुमान जी ने उन्हें मुक्त किया। इस घटना के बाद शनि देव ने वादा किया कि जो व्यक्ति हनुमान जी की पूजा करेगा, उसे उनके कोप का सामना नहीं करना पड़ेगा।
शनि देव का महत्व
शनि देव कर्म और न्याय के देवता हैं। वे व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों के आधार पर फल देते हैं। ज्योतिष शास्त्र में शनि को विशेष स्थान दिया गया है, और उनकी दशा को जीवन में महत्वपूर्ण माना जाता है।
शनिवार का दिन शनि देव की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन व्रत रखने, दान देने और तेल चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है।
शनि देव की कथाएं यह सिखाती हैं कि जीवन में सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने वालों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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